Wednesday, September 10, 2014

ये कैसा ‘माया’ मोह


उत्तर प्रदेश की सियासत के दो धुर विरोधी चेहरे...दोनों अपनी अपनी सियासी जमीन के सरताज भी हैं...और इस खेल के धाकड़ खिलाड़ी भी...लेकिन बुधवार की सुबह सूबे की राजधानी लखनऊ से एक ऐसा बवंडर उठा...जिसने इन दोनों धुर विरोधियों मायावती और मुलायम सिंह यादव की सियासी जमीन को हिला दिया...एक सवाल के जवाब में नेताजी ने मायावती से हाथ मिलाने का संकेत दे दिया...और इस संकेत में दोनों के बीच दोस्ती का सूत्रधार कोई और नहीं बल्कि वो शख्स बने...जिनके भविष्य को चारा घोटाला चर गया...नेताजी के माया मोह के बाद इतिहास एक बार फिर भविष्य की दहलीज पर दस्तक देने को बेताब दिखा...लालू और मुलायम के बीच पिस रहीं मायावती के जहन में अचानक गेस्ट हाउस कांड की यादें ताजा हो गईं...वही गेस्ट हाउस कांड जब 2 जून 1995 को बीएसपी ने समाजवादी पार्टी से समर्थन खींच लिया था...जिसके कारण सरकार गिर गई थी और मुलायम सिंह यादव की कुर्सी चली गई...इसके बाद इसी दिन सपा के विधायकों और सांसदों की अगुवाई में पार्टी समर्थकों ने लखनऊ के सरकारी गेस्ट हाउस कांड में मायावती और बीएसपी नेताओं पर हमला बोल दिया था...इस कांड से पहले 1993 में सपा और बीएसपी ने साथ मिलकर यूपी विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी...तब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव बीएसपी की मदद से मुख्यमंत्री बने थे...यूपी के अतीत से निकलकर बिहार के वर्तमान में आएं...तो सूबे की फिजा में आए उस सियासी बदलाव की तस्वीर भी उभर आई है...जिसने दो अलग अलग धाराओं को महागठबंधन के मुहाने पर ला खड़ा किया...भारतीय राजनीति में बदलाव की वो बयार चली...जिसने क्षेत्रीय क्षत्रपों को इतना सहज कर दिया कि उन्हे अपने विरोधियों से हाथ मिलाने से भी परहेज नहीं रहा...और इस बदलाव का गवाह वो समय बन रहा था...जिसने लोकसभा चुनाव में ना केवल मुर्झाए कमल को खिलते देखा...बल्कि राजनीति की प्रयोगशाला कहे जाने वाले यूपी और बिहार में बीजेपी को इतिहास लिखते भी...ये उसी नरेंद्र मोदी का करिश्मा था...जो तमाम उतार चढ़ावों के बाद सत्ता के शिखर पर पहुंचे...लेकिन देश की राजनीति में आए इस बड़े बदलाव ने एक भूचाल ला दिया...ये उसी भूचाल का असर था कि बिहार में होने वाले उपचुनाव से पहले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को जेडीयू नेता और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अच्छे लगने लगे...दोनों लोहिया की क्रांति से जन्मे भाई तक बन गए...तो सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को भी मोदी के खिलाफ मायावती से हाथ मिलाने की सलाह दे डाली...नेताजी जरा देर से जगे...नींद टूटी तो उन्होने नया सियासी शगूफा छेड़कर खुद अपने ही सिद्धांतों को कटघरे में खड़ा कर दिया...उनका ये कहना कि अगर लालू मायावती का हाथ पकड़कर मेरे पास लाएं तो मैं बीएसपी प्रमुख से हाथ मिलाने को तैयार हूं...मुझे इसमें कोई ऐतराज नहीं होगा...नई बहस को जन्म दे गया...लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बहस तेज हो गई...कहीं इस मर्म को समझने के लिए पॉलिटिकल पंडित दिमाग के घोड़े दौड़ाने में जुटे थे...तो कहीं सियासत पर संस्कार भारी पड़े रहे थे...मुलायम के भाई और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव इस बवंडर को थामने की बजाय इसका रुख लालू प्रसाद यादव की तरफ मोड़ते दिखे...तो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को बैठे बिठाए नेताजी के इस बयान पर चुटकी लेने का मौका मिल गया...यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को जैसे एक बार फिर जवानी के दिनों की याद आ गई...गरजते हुए लहजे में उन्होने साफ साफ कह दिया कि अब बीजेपी को रोक पाना इन क्षेत्रीय क्षत्रपों के बस की बात नहीं रही...तो उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने चुटकी भरे अंदाज में कह दिया कि...मुलायम के मायावती के साथ गठजोड़ की खबरों से एक बात साफ हो गई कि मोदी बांटने वाले नहीं बल्कि एकजुट करने वाले नेता हैं...साथ ही उन्होने ये भी कहा कि यूपी विधानसभा में बीएसपी विधायकों का बर्ताव देखकर ही समझ में आ गया था कि वो एसपी की बी टीम बनने को तैयार है...इन दोनों नेताओं से एक कदम आगे बढ़ते हुए गोरखपुर से बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ ने तो समाजवादी पार्टी को गुंडों की पार्टी तक करार देते हुए मायावती को गेस्ट हाउस कांड नहीं भूलने की हिदायत दे डाली...दरअसल यहां ये समझने की जरुरत है कि लालू को नीतीश के साथ की जरुरत क्यों पड़ी...और क्यों उन्होने यूपी में दरकते पिछड़े वोटों को सहेजने के लिए मुलायम को मायावती से गठजोड़ की सलाह दी...जिसका जवाब इस साल हुए 16वीं लोकसभा चुनाव के नतीजों में मिल जाएगा...बात अगर बिहार की करें तो आम चुनाव के नतीजों ने इस प्रदेश से जुड़ी कई मान्यताओं को न केवल ध्वस्त कर दिया... बल्कि पुराने जातीय समीकरणों के भी बदलने के संकेत दिए...वैसे बिहार में जातीय समीकरण पर चुनाव लड़े जाने की बात पुरानी रही है...लेकिन इस चुनाव के बाद ये तय हो गया कि राजनीतिक दलों के जातीय समीकरणों की दीवारें भी दरकने लगी...शायद यही वजह थी कि जेडीयू 20 से सिमटकर 2 सीटों पर पहुंच गई...तो आरजेडी अपनी पुरानी स्थिति यानी 4 सीटों को किसी तरह से बचाने में कामयाब हुई...लेकिन बीजेपी के नतीजों ने सबको चौंका दिया था...उधर इससे भी ज्यादा चौंकाने वाले नतीजे उत्तर प्रदेश में देखने को मिले...जहां सत्ताधारी समाजवादी पार्टी 5 सीटों पर सिमट गई...तो बीएसपी का खाता ही नहीं खुला...लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अब तक के इतिहास में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए रिकॉर्ड 71 सीटों पर बाजी मारी...इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को जोर का झटका बहुत जोर से लगा था...ये तमाम आकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने नई ऊंचाइयों को छुआ...तो वहीं क्षेत्रीय दलों की रातों की नींद उड़ा दी...लालू चारा घोटाले में आरोपी होने के कारण अगले 12 साल तक सियासत के मैदान से बाहर हो गए...तो नीतीश बीजेपी से अलग होकर नया जनाधार बनाने की जद्दोजहद में जुटे हैं...उधर समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव जो केंद्र की सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रहे थे...इस बार के आम चुनाव ने उन्हे कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा...मायावती तो जैसे चुनावी रण में दूर दूर तक कहीं नजर ही नहीं आईं...यही वजह रही कि अपने सियासी अस्तित्व को बचाने के लिए लालू और नीतीश को सालों की दुश्मनी भुलाकर एक दूसरे को गले लगाना पड़ा...लेकिन लालू की सलाह पर मुलायम का मायावती से हाथ मिलाने का सपना उस सपने के टूटने की गवाही देता है...जो नेताजी ने 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा के प्रचंड बहुमत में आने के बाद देखा था...हालांकि मायावती ने मुलायम की हसरतों को एक झटके में ही तोड़ दिया...लेकिन इतना तो तय है कि बदलते सियासी समीकरणों के बीच इन क्षेत्रीय क्षत्रपों को आने वाले कल का खतरा भी अभी से सताने लगा है...नए दौर में भारतीय राजनीति का नया इतिहास भले ही नरेंद्र मोदी ने लिखा हो...लेकिन सियासी मतलबपरस्ती और सत्ता के लिए विरोधियों के कंधों पर चढ़ जाना इसी देश का पुराना मिजाज रहा है...आखिर हो भी क्यों ना...ये राजनीति का पुराना माया मोह जो है... विकास यादव टीवी पत्रकार

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