
साल 1994 में गर्मी की छुट्टियां अभी शुरु ही हुई थीं...कुछ दोस्त अपने मम्मी पापा के साथ छुट्टियां बिताने अपने अपने घरों को जाने की तैयारियां कर रहे थे...तो कुछ यूपी के उस छोटे से जिले में रहकर जहां हमारे पिता जी सरकारी नौकर थे...धमाचौकड़ी के नए नए तरीके ढूंढा करते थे...उस वक्त मन बहलाने के लिए इतने साधन नहीं थे जितने आज नजर आते हैं...पर इतना जरुर था कि कमरे के एक कोने में रखा टेलीविजन हमारे सपनों को नई उड़ान देता था...लेकिन वो उड़ान भी बिजली के आने जाने के साथ हिचकोले खाती...दिल बहलाने के लिए पड़ोस में रहने वाले अंकल के पास चले जाते...लेकिन वहां भी बचपन कोई ठौर नहीं तलाश पाता...उसी दौर में कॉमिक्स का कीड़ा लगा...जिसने एक बार फिर हमारे सपनों को नई उड़ान दी...जहां चंद पन्नों में पूरा संसार चुटकियों में सिमट जाता...इसमें जोश था...तो हौसलों की मिसाल भी...पहली बार दर्द और दुख को भी हमने यहीं समझा...कॉमिक्स की इसी दुनिया में हमारा वास्ता उस किरदार से पड़ा...जिसका नाम चाचा चौधरी था...जिनके बारे में हम कहा करते थे कि चाचा चौधरी पड़ोस वाले अंकल से भी ज्यादा होशियार थे...कार्टून की दुनिया के उस अमर किरदार की याद आज इसलिए भी ज्यादा आ रही है...क्योंकि इसे जन्म देने वाले...और इसमें जान फूंकने वाले प्राण साहब अब इस दुनिया में नहीं रहे...प्राण साहब का पूरा नाम प्राण कुमार शर्मा था...जिनका जन्म 15 अगस्त 1938 को पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था...उनके करियर की शुरुआत 60 के दशक में दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अखबार मिलाप के लिए कार्टून बनाने से की...उनके बनाए कार्टून चाचा चौधरी और मंगल ग्रह से आए साबू घर घर में चर्चा का विषय बन गए....प्राण साहब की प्रासंगिकता केवल चाचा चौधरी तक ही सीमित नहीं रही...उनके कालजयी कार्टूनों में चुलबुली पिंकी...रमन और श्रीमती जी भी थे...जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं...लेकिन चाचा चौधरी की बात ही निराली थी...उस दौर के बच्चों के लिए चाचा चौधरी उतने ही वास्तविक थे...जितने पड़ोस के कोई ताऊ...लेकिन पड़ोस के ताऊ की तरह पगड़ी पहनने वाले चाचा चौधरी की खासियत उस पगड़ी के नीचे उनका वो दिमाग था...जो उस जमाने से कंप्यूटर से तेज भागता रहा...जिस जमाने में भारत में कंप्यूटर की चर्चा शुरू भर हुई थी...चाचा चौधरी का किरदार प्राण साहब ने सबसे पहले हिंदी बाल पत्रिका लोटपोट के लिए गढ़ी...जो बाद में स्वतंत्र कॉमिक्स के तौर पर बहुत मशहूर हुई...देखते ही देखते प्राण साहब कार्टून के आसमान पर चमकता सितारा बन गए...बाद में उन्हे भारत के वॉल्ट डिजनी की उपाधि से भी नवाजा गया...लेकिन उनके निधन के बाद अचानक से हमारे सामने बचपन की वो धुंधली तस्वीरें ताजा हो गईं...जिन पर उस दौर के हमारे साथियों को बहुत नाज होगा...पूरी गर्मी की छुट्टियां इसी उधेड़बुन में निकल जाती थीं कि इस बार चाचा चौधरी के कितने कॉमिक्स पढ़े...क्योंकि तब कॉमिक्स खरीदकर नहीं किराए पर लेकर पढ़े जाते थे...उस वक्त एक कॉमिक्स का किराया 20 पैसे होता था...जिसके लिए बचपन में बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती थी...कई बार तो चाचा चौधरी के तेज दिमाग को पढ़ने के लिए काफी दूर भी जाना पड़ता था...चुनौतियां बहुत थीं...लेकिन बचपन कभी बेबस नजर नहीं आया...शुरुआती दिनों में एक दो घंटे कॉमिक्स में डूबने के बाद ऐसा चस्का लगा कि पूरा दिन पीठ सीधी किए हम यार दोस्त कई कॉमिक्स चाट जाते...चाचा चौधरी की कहानी इतनी रोचक और ज्ञानवर्धक थी...कि इसमें सामाजिक बुराईयों का समाधान करने की सीख मिलती...दायरे टूटने लगे...कॉमिक्स की चहारदीवारियों से बाहर निकल वो किस्से कहानियां अब बड़े बड़ों को सोचने पर मजबूर कर देतीं...हमारे सवालों और शैतानियों से परेशान मां भी ताने मारने लगती...उसे तो टेलीविजन और पड़ोस की आंटी से बदकही छोड़ हमारी दुनिया समझ ही नहीं आती...पिता जी भी शाम को घर आने के बाद एक बार डांट पिलाना अपना फर्ज समझते...लेकिन हम तो अपनी ही धुन में मगन थे...हर सुबह चुनौती इसी बात की होती कि नया कॉमिक्स पढ़ने के लिए पैसों का जुगाड़ कहां से होगा...लेकिन जैसे तैसे हो ही जाता था...इन कॉमिक्सों को पढ़ने के बाद ऐसा लगता मानो चाचा के साथ मंगल ग्रह से आया साबू भी हमारे पड़ोस में ही रहने लगा...छुट्टियां खत्म होने के बाद भी प्राण साहब के ये अमर किरदार हमारे जहन से नहीं जाते...स्कूल में बात बात में चाचा चौधरी...साबू...पिंकी और रमन की बातें यूहीं छिड़ जातीं...कई बार तो मास्टर जी भी हमारी कल्पनाओं पर भड़क जाते...शिकायत घर तक पहुंचती...लेकिन मां और पिताजी भी हमारी आदतों से मजबूर थे...जैसे जैसे बचपन जवानी की दहलीज पर पहुंच रहा था...वैसे वैसे हम चाचा चौधरी और दूसरे कार्टून किरदारों से दूर होते चले गए...लेकिन यादें कभी दिल से भुलाई नहीं जा सकीं...जमाना इंटरनेट का आया तो लगा सोच को और विस्तार मिलेगा...लेकिन बीते 10 सालों में हमने सोच को एक कमरे तक सिमटते भी देखा...आज का बचपन कल्पनाओं की उड़ान तो भरता है...लेकिन भविष्य में अतीत पर इतराने के लिए उनके पास कुछ ऐसा नहीं होगा...जिस पर हम गर्व महसूस करते हैं...इस दौर में कई किस्से-कहानियां...और किरदारों का जन्म हुआ...लेकिन वो अपनी अमिट छाप छोड़ने में बहुत हद तक कम ही सफल नजर आ रहे हैं...5 अगस्त को चाचा चौधरी को प्राण देने वाले प्राण साहब का एक लंबी बीमारी के बाद निधन हुआ तो लगा कि जैसे हमारे बचपन के उन कार्टून किरदारों का दिल ही टूट गया...हममें से जिसने भी उनके इस दुनिया से चले जाने की खबर जहां भी सुनी...अपने आस पास उन्ही किरदारों को रोते सुना...लगा मानो कम्यूटर से तेज दिमाग चलाने वाले...चाचा चौधरी का पूरा शरीर ही सुन्न पड़ गया...मंगल ग्रह से धरती पर अपनी दिलेरी दिखाने के लिए अवतरित हुआ साबू भी बेसहारा नजर आने लगा...पिंकी और बिल्लू भी अपनी शैतानियों को भूल हमेशा के लिए जड़ से हो गए...तो श्रीमती जी के चेहरे पर सन्नाटा छा गया...कार्टून की दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले प्राण साहब के निधन के बाद उन्हे श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगने लगा...रंग बिरंगे कार्टूनों और अलग अलग किस्मों की मुद्राएं लिए तस्वीरों से फेसबुक के पन्ने पट गए...इन छवियों में तमाम वही चर्चित चरित्र थे...जिन्हे प्राण साहब ने अपनी बेजोड़ कल्पनाशीलता से गढ़ा था...फेसबुक के जमाने में ऐसा होना आम बात है...लेकिन आज के दौर के बच्चों को ये जरूर चौंकाने वाला लगा...ऐसा लगा जैसे कोई लोकप्रिय अभिनेता या गायक हमारे बीच से चला गया हो...अपने बचपन के दिनों में हमने कभी प्राण साहब को तलाशने की कोशिश नहीं की...और ना ही कभी उनके बारे में जानने की...बेशक वो अभिनेता नहीं थे और ना ही कोई गायक...लेकिन आज करीब 20 साल गुजरने के बाद वो हमारे लिए इन सबसे भी कहीं बढ़कर नजर आ रहे हैं...कहते हैं कि बच्चों के लिए काम करने वालों को सम्मान मिले या ना मिले...प्यार बहुत मिलता है...और प्राण साहब के साथ भी यही है...क्योंकि उनकी याद एक पीढ़ी के लिए उसके बचपन की याद है...जिन दोस्तों का बचपन 20वीं सदी के आठवें और नौवें दशक में बीता...उनके लिए चाचा चौधरी महज कोई कार्टून किरदार नहीं...पहली बार जब चाचा चौधरी का कॉमिक्स पढ़ा तबसे लेकर आज तक दुनिया में कई उतार चढ़ाव आए...कभी जिंदगी संघर्षों के बीच फंसी नजर आई...तो कभी बिना लगाम के मंजिल की तलाश में सरपट दौड़ती...लेकिन प्राण साहब के इस दुनिया से अलविदा कहने के बाद इन 20 सालों का सफर जैसे उनके रचे कार्टूनों के ईर्द गिर्द सिमटा नजर आया...भारत के वॉल्ड डिजनी कहे जाने वाले इस महान कार्टूनिस्ट को भले ही कोई याद रखे या ना रखे...लेकिन हमारी पीढ़ी के लोग कभी इन्हे भुला नहीं पाएंगे...क्योंकि जिस दौर में हमारा बचपन गुजरा...उस दौर में भले ही कंप्यूटर के किस्से नहीं थे...लेकिन प्राण साहब के अमर किरदार चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से तेज जरुर चलता था...
विकास यादव
टीवी पत्रकार
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