Sunday, December 18, 2011

खामोश हो गये गरीबों के व्यास


अदम गोंडवी..वो कलम के सिपाही तो नहीं थे,लेकिन उनकी कलम की धार तलवार से कम भी नहीं थी.उनका हर एक शब्द आज की दोगली सियासत की धज्जियां उड़ाने के लिए काफी होता था.उनकी रचनाएं अंतर्मन में तूफान पैदा कर देती थीं.पेश से किसान अदम जी की लेखनी हमेशा आम आदमी के ईर्द गर्द ही घूमती नजर आई.उनकी हर एक रचना आज की घटिया राजनीति और राज्य व्यवस्था के मुंह पर करारा तमाचा होता था. तरक्की और विकास के ढिंढोरे से कोसों दूर उनकी कविताएं दो वक्त की रोटी के लिए जूझते आम आदमी के दर्द को उकेरती थी.आज गोंडवी जी के निधन पर मुझे सुधाकर जी से किया हुआ एक वादा याद आ गया,गोंडवी जी से मेरी पहली मुलाकात(उनकी रचनाओं को पढ़ने का सौभाग्य)सुधाकर जी ने ही कराई थी.ये उनकी लेखनी का ही जादू था कि पहली ही मुलाकात में मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक बन बैठा.उनको पढ़ते पढ़ते हम अक्सर आम आदमी के जीवन संघर्ष की गहराईयों में खो जाते और जब आम आदमी का दर्द उनकी रचनाओं से निकलकर बाहर आता तो कुछ ना कर पाने की एक लंबी खामोशी हमें हर सवाल का जवाब दे देती.फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो ने कहा था"a man is born free but everywhere he is in chain" सदियां आईं और चली गईं लेकिन आम आदमी के हालात बद से बदतर होते चले गये.क्या लोकतंत्र क्या तानाशाही जिसे मौका मिला सत्ता की भूख ने सबसे अधिक आम आदमी के पेट पर ही लात मारी.
आज अदम जी हमारे बीच नहीं हैं,लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा दिलों में तूफान पैदा करती रहेगी

विकास यादव
(टीवी पत्रकार,हैदराबाद)