Saturday, May 21, 2011

सियासतनामा...


मैं दहशतगर्द था मरने पर बेटा बोल सकता है
हुकुमत के इशारे पर तो मुर्दा बोल सकता है
हुकुमत की तवज्जो चाहती है ये जली बस्ती
अदालत पूछना चाहे तो मलबा बोल सकता है
कई चेहरे अभी तक मुहजबानी याद हैं इसको
कहीं तुम पूछ मत लेना ये गूंगा बोल सकता है
अदालत में गवाही के लिए लाशें नहीं आतीं
वो आंखें बुझ चुकी हैं फिर भी चश्मा बोल सकता है
बहुत सी कुर्सियां इस मुल्क में लाशों पर रखी हैं
ये वो सच है जो झूठे से भी झूठा बोल सकता है

Tuesday, May 17, 2011

लाश...नहीं, राख पर सियासत...


राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा ये बता पाना बेशक मुश्किल है,लेकिन चुनावी समर में किसकी क्या औकात है ये बताने की बिल्कुल भी जरुरत नहीं.भट्टा पारसौल में किसान आंदोलन के बाद भड़की आग इस कदर विकराल हुई कि नेताओं के वारे न्यारे हो गये.जिसको देखो वही लंगोट कसकर किसानों का मसीहा बनने निकल पड़ा.जमाना युवाओं का है सो इस कतार में कांग्रेस के तथाकथित युवराज राहुल गांधी ने बाजी मार ली और नोएडा प्रशासन को भनक लगने से पहले ही गांव में डेरा जमा लिया.राहुल गांव में कैसे पहुंचे ये भले ही वहां के लोगों के लिए एक यक्ष प्रश्न हो,लेकिन यूपी की मुखिया मायावती के लिए किसी तमाचे से कम नहीं था.कांग्रेसियों की नजर में अब भट्टा पारसौल लंका बन चुकी थी तो राहुल गांधी उनके अंगद.सो माया के गढ़ में अंगद ने अपने पैर कुछ यूं जमाये कि यूपी सरकार को उसे उखाड़ने में करीब 19 घंटे लग गये.इन 19 घंटों में जो कुछ हुआ वो ये बताने के लिए काफी था कि मिशन 2012 की तैयारियों में जुटी इन पार्टियों को किसानों की भावनाओं से कुछ लेना देना ही नही है.उधर मौके की नजाकत का फायदा उठाकर यूपी में दूसरे विपक्षी दलों ने भी अपनी ताल ठोंकनी शुरू कर दी.राजनाथ गाजियाबाद में एक दिन के अनशन पर बैठे तो तमाम दूसरे नेता मेरठ और बुलंदशहर सहित कई शहरों में गिरफ्तारियां दे रहे थे.इसी बीच राजनीति के शकुनि दिग्विजय सिंह ने अपनी चाल चलते हुए राहुल के कानों में वो मंतर मारा कि राहुल सीधे भट्टा पारसौल के कुछ किसानों के साथ प्रधानमंत्री से मिलने उनके आवास पहुंच गये और उन्हे गांव में राख के ढेर में नरकंकाल दबे होने की बात बताते हुए पूरे मामले की जांच की बात कही.जिसके बाद यूपी की सियासत में उबाल आना लाजमी था और हुआ भी वहीं, दोनों तरफ से बयानों के दौर शुरू हुए और मामला आगरा के फोरेंसिक लैब तक पहुंच गया जहां राख से लिए गये नमूनों को जांच के लिए भेज दिया गया.अब आप ही बताईये किसानों के हक की लड़ाई देखते ही देखते किस तरह से सियासी पचड़ों में फंसी उसका कोई ओर छोर भी है...