Sunday, September 26, 2010

कल की आवाज...


अजीब इस दुनिया का रिवाज है
हर शख्स यहां सुकून के लिए मोहताज है
हर रोज कई लोग नये मिलते हैं
कुछ खुद ही भूल जाते हैं, कुछ भूलाये नहीं भूलते हैं
हर एक नई सुबह कुछ खाब नये लाती है
शाम होते ही ये खाब अब इन आंखों को सताते हैं
ऐ खुदा इन आंखों में गर नया खाब कोई आये
सोते हुए मेरे मन को झकझोर ना जाये

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