Friday, September 24, 2010

मेरा गांव...


अरसा गुजर गया मैंने वो खुशहाली नहीं देखी
गांव में अब लोगों की वो चहलकदमी नहीं देखी
वो भी क्या वक्त था...
जब किसी के चेहरे पर मैने बेरुखी नहीं देखी
अरसा गुजर गया मैने वो खुशहाली नहीं देखी
बूढ़ी दादी की शक्ल आज भी ढूंढ़ता हूं मैं
शायद किसी ने उनकी वो हंसी नहीं देखी
गांव में कोयल की कू से मन झूम जाता था मेरा
शायद किसी ने वैसी हरियाली नहीं देखी
दादा की मेहनत देखकर दंग रह जाता था मैं
हमने सूरज की वो तपती गर्मी नहीं देखी
अरसा गुजर गया मैंने वो खुशहाली नहीं देखी
गांव में अब वो लोगों की चहलकदमी नहीं देखी

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